नवनाथ कथा
२) गोरक्षनाथ जन्म : मत्स्येन्द्रनाथजी भ्रमण करते हुए गोदावरी नदी के किनारे चन्द्रगिरि नामक स्थान पर पहुंचे और सरस्वती नाम की स्त्री के द्वार पर भिक्षा मांगने लगे! नि:संतान स्त्री भिक्षा लेकर बाहर आई, लेकिन वह उदास थी! श्रीमत्स्येन्द्रनाथजी ने उसे विभूति देकर कहा कि इसे खा लेना, पुत्र प्राप्ति होगी! लेकिन अनजान भय के कारण उस महिला ने सिद्ध विभूति को एक झोपड़ी के पास गोबर की ढेरी पर रख दिया! १२ साल बाद श्रीमत्स्येन्द्रनाथजी फिर वहीं पहुंचे और सरस्वती से उस बालक के बारे में पूछा! सरस्वती ने विभूति को गोबर की ढेरी पर रखने की बात बता दी! इस पर मत्स्येन्द्रनाथ ने कहा,अरे माई, वह विभूति तो अभिमंत्रित थी! निष्फल हो ही नहीं सकती! तुम चलो, वह स्थान तो दिखाओ! उन्होंने अलख निरंजन की आवाज लगाई और गोबर की ढेरी से निकलकर १२ साल का एक बालक सामने आ गया! गोबर में रक्षित होने के कारण मत्स्येन्द्रनाथजी ने बालक का नाम गोरक्ष रखा और अपना शिष्य बनाकर अपने साथ ले गए!
गहिनीनाथ के गुरु गोरक्षनाथ थे!
३) जालिंदरनाथ : इनके गुरु दत्तात्रेय थे! एक समय की बात है! हस्तिनापुर में बृहद्रवा नाम के राजा सोमयज्ञ कर रहे थे! अंतरिक्षनारायण ने यज्ञ के भीतर प्रवेश किया! यज्ञ की समाप्ति के बाद एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई! यही बालक जालंधर कहलाया!
३) जालिंदरनाथ : इनके गुरु दत्तात्रेय थे! एक समय की बात है! हस्तिनापुर में बृहद्रवा नाम के राजा सोमयज्ञ कर रहे थे! अंतरिक्षनारायण ने यज्ञ के भीतर प्रवेश किया! यज्ञ की समाप्ति के बाद एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई! यही बालक जालंधर कहलाया!
४) कानिफनाथ : मत्स्येन्द्र नाथ के समान ही जालंधर नाथ और कानिफनाथ की महिमा मानी गई! इनके गुरु जालंदरनाथ थे! जालंधरनाथ मत्स्येंद्र नाथ के गुरु भाई माने जाते हैं! कानिफनाथ जालंधर नाथ के शिष्य थे और इनका नाम कण्हपा, कान्हूपा, कानपा आदि प्रसिद्ध है! कोई तो उन्हें कर्नाटक का मानता है और कोई उडीसा का! जालंधर और कानिफनाथ कापालिक मत के प्रवर्तक थे! कापालिकों की साधना स्त्रियों के योग से होती है! महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में गर्भगिरि पर्वत से बहने वाली पौनागिरि नदी के पास ऊंचे किले पर मढ़ी नामक गांव बसा हुआ है! और यहीं है इस महान संत की समाधि! इस किले पर श्री कानीफ नाथ महाराज ने १७१० में फाल्गुन मास की वैद्य पंचमी पर समाधि ली थी! कानिफनाथ महाराज हिमालय में हथिनी के कान से प्रकट हुए थे! ब्रह्मदेव एक दिन सरस्वती के प्रति आकर्षित हुए! तो उनका वीर्य नीचे गिर गया! जो हवा में घूमता हुआ हिमाचल प्रदेश में विचरण कर रही एक हथिनी के कान में समा गया! कुछ समय बाद प्रबुद्धनाराण ने उन्हें जालंधरनाथ के आदेश से कान से निकलने का निर्देश दिया और इस तरह उनका नाम कानिफनाथ पड़ा! कानिफनाथ महाराज ने बद्रीनाथ में भागीरथी नदी के तट पर १२ वर्ष तपस्या की और कई वर्ष जंगलों में गुजार कर योग साधना की!
उन्होंने दलितों की पीड़ा दूर करने के विषय पर साबरी भाषा में कई रचनाएं की! इन रचनाओं के गायन से रोगियों के रोग दूर होने लगे! आज भी लोग अपने कष्ट निवारण के लिए महाराज के द्वार पर चले आते हैं!
५) भर्तृहरि नाथ : भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे! राजा गंधर्वसेन ने राजपाट भर्तृहरि को सौंप दिया! अपनी रानी जिससे भर्तृहरि अपार प्रेम करते थे! उससे मिले धोखे और फिर पश्चाताप के रूप में रानी द्वारा आत्मदाह की घटना ने भर्तृहरि को वैराग्य जीवन की राह दिखा दी! वे वैरागी हो गए! इसके बाद विक्रमादित्य को राज्यभार संभालना पड़ा!
एक सिद्ध योगी ने राजा भर्तृहरि को एक फल दिया और कहा कि इसको खाने के बाद आप चिरकाल तक युवा बने रहेंगे! भर्तृहरि ने फल ले लिया पर उनकी आसक्ति अपनी छोटी रानी में थी! वह फल उन्होंने हिदायत के साथ उन्होंने अपनी छोटी रानी को दे दिया! छोटी रानी को एक युवक से प्रेम था! तो उसने वह फल युवक को दे दिया! युवक को एक वैश्या से प्रेम था! तो उसने उसे वह फल दे दिया! वैश्या को लगा कि वह तो पतिता है! फल के लिए सुपात्र तो राजा भर्तृहरी हैं! जो दीर्घायु होंगे तो राज्य का कल्याण होगा! ऐसा सोचकर उस वैश्या ने वह फल वेश बदल कर राजा को दिया! फल को देख राजा के मन से आसक्ति जाती रही और उन्होंने नाथ संप्रदाय के गुरु गोरक्षनाथ का शिष्यत्व ले लिया! मध्यप्रदेश के उज्जैन में आज भी भर्तृहरि की गुफा है! जहां वे तपस्या किया करते थे!
६) रेवणनाथ : महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में करमाला तहसील के वीट गांव में इनकी समाधि है! रेवणनाथ के पिता थे ब्रह्मदेव!
७) नागन्नाथ : बहुत पहले ब्रह्मा का वीर्य एक नागिन के गर्भ में चला गया था! जिससे बाद में नागनाथ की उत्पत्ति हुई!
८) चर्पट नाथ : चर्पटनाथ सिद्ध योगी थे! एक समय की बात है सभी देवी देवता शिवपार्वती के विवाह अवसर पर एकत्रित हुए तब ब्रह्मदेव का वीर्य पार्वती की सुंदरता देखकर गिर गया! उस समय वह वीर्य उनकी एड़ी से कुचला गया! इस तरह यह दो भागों में विभक्त हो गया! एक भाग से ६० हजार संतों का जन्म हुआ और दूसरा भाग और नीचे गिरा और नदी के ईख में अटक गया!
९) गहिनीनाथ: एक दिन गुरु गोरखनाथ अपने गुरु मछिन्दर नाथ के साथ तालाब के किनारे एक एकांत
जगह प्रवास कर रहे थे, जहां पास ही में एक गांव था! मछिंदरनाथ ने कहा कि मैं तनिक भिक्षा लेकर आता हूं! तब तक तुम संजीवनी विद्या के बारे में तुमने आज तक जो सुना है ना उसकी सिद्धि का मंत्र जपो! यह एकांत में ही सिद्ध होती है! संजीवनी विद्या को सिद्ध करने को चार बातें चाहिए श्रद्धा, तत्परता, ब्रह्मचर्य और संयम! खाली एकांत में रहो, ध्यान से जप करो और संजीवनी सिद्ध कर लो! ऐसा कहकर मछिंदरनाथ तो चले गए और गोरखनाथ जप करने लगे! वे जप और ध्यान कर ही रहे थे! वहीं तालाब के किनारे बच्चे खेलने आ गए! तालाब की गीली गीली मिट्टी को लेकर वे बैलगाड़ी बनाने लगे! बैलगाड़ी बनाने तक वो सफल हो गए, लेकिन बैलगाड़ी चलाने वाला मनुष्य का पुतला वे नहीं बना पा रहे थे! किसी लड़के ने सोचा कि ये जो लडका हैं इन्हीं से कहें! हमको गाड़ी वाला बनाके दीजिए! गुरु गोरखनाथ ने कहा कि अभी हमारा ध्यान भंग न करो फिर कभी देखेंगे! लेकिन वे बच्चे नहीं माने! बच्चों के आग्रह के चलते गोरखनाथ ने कहा लाओ बना देता हूं! उन्होंने जप संजीवनी जप करते हुए ही मिट्टी उठाई और पुतला बनाने लगे! संजीवनी मंत्र चल रहा था! बैलगाड़ी वाला वो पुतला
बनाते गए! बनाते बनाते नन्हासा उसके अंग प्रत्यंग बनते गए! और मंत्र प्रभाव से वो पुतला सजीव होने लगा! उसमें जान आ गई! जब पूरा हुआ तो वो पुतला बोला प्रणाम! गोरखनाथ चकित रह गए! बच्चे घबराए! वह
पुतला सजीव होकर आसन लगाके बैठ गया! बच्चे चिल्लाते हुए भागे! भूत भूत! मिट्टी में से भूत बन गया! जाकर उन बच्चो ने गांव वालों से कहा और गांव वाले भी उस घटना को देखने जुट गए! सभी ने देखा बच्चा बैठा है! गांव वालों ने गोरखनाथ को प्रणाम किया! इतने में गुरु मछिंद्रनाथ भिक्षा लेकर आ गए! उन्होंने देखा और फिर अपने कमंडल से दूध निकालकर उस बालक को दूध पिलाया! फिर दोनों ने सोचा अब एकांत, जप, साधना के समय वहां से विदा होना ही अच्छा! दोनों नाथ बच्चे को लेकर जाने लगे! इतने में कनकगिरी गांव के ब्राह्मण और ब्राह्मणी जिनको संतान नहीं थी! उन्होंने आग्रह किया कि आप इतने बड़े योगी हैं! तो हमारा भी कुछ भला करिए नाथ! गाव मे मधु नाम का ब्राह्मण और उसकी पत्नी गंगा रहती थी! गांव वालों ने कहा कि आपकी कृपा से इन्हें संतान मिल सकती है! गोरखनाथ और मछिन्द्रनाथ ने कहा
तुम इस बालक को क्यों नहीं गोद ले लेते! कुछ सोच विचार के बाद दोनों ने वक्त बालक को गोद लेना स्वीकार कर लिया!
जगह प्रवास कर रहे थे, जहां पास ही में एक गांव था! मछिंदरनाथ ने कहा कि मैं तनिक भिक्षा लेकर आता हूं! तब तक तुम संजीवनी विद्या के बारे में तुमने आज तक जो सुना है ना उसकी सिद्धि का मंत्र जपो! यह एकांत में ही सिद्ध होती है! संजीवनी विद्या को सिद्ध करने को चार बातें चाहिए श्रद्धा, तत्परता, ब्रह्मचर्य और संयम! खाली एकांत में रहो, ध्यान से जप करो और संजीवनी सिद्ध कर लो! ऐसा कहकर मछिंदरनाथ तो चले गए और गोरखनाथ जप करने लगे! वे जप और ध्यान कर ही रहे थे! वहीं तालाब के किनारे बच्चे खेलने आ गए! तालाब की गीली गीली मिट्टी को लेकर वे बैलगाड़ी बनाने लगे! बैलगाड़ी बनाने तक वो सफल हो गए, लेकिन बैलगाड़ी चलाने वाला मनुष्य का पुतला वे नहीं बना पा रहे थे! किसी लड़के ने सोचा कि ये जो लडका हैं इन्हीं से कहें! हमको गाड़ी वाला बनाके दीजिए! गुरु गोरखनाथ ने कहा कि अभी हमारा ध्यान भंग न करो फिर कभी देखेंगे! लेकिन वे बच्चे नहीं माने! बच्चों के आग्रह के चलते गोरखनाथ ने कहा लाओ बना देता हूं! उन्होंने जप संजीवनी जप करते हुए ही मिट्टी उठाई और पुतला बनाने लगे! संजीवनी मंत्र चल रहा था! बैलगाड़ी वाला वो पुतला
बनाते गए! बनाते बनाते नन्हासा उसके अंग प्रत्यंग बनते गए! और मंत्र प्रभाव से वो पुतला सजीव होने लगा! उसमें जान आ गई! जब पूरा हुआ तो वो पुतला बोला प्रणाम! गोरखनाथ चकित रह गए! बच्चे घबराए! वह
पुतला सजीव होकर आसन लगाके बैठ गया! बच्चे चिल्लाते हुए भागे! भूत भूत! मिट्टी में से भूत बन गया! जाकर उन बच्चो ने गांव वालों से कहा और गांव वाले भी उस घटना को देखने जुट गए! सभी ने देखा बच्चा बैठा है! गांव वालों ने गोरखनाथ को प्रणाम किया! इतने में गुरु मछिंद्रनाथ भिक्षा लेकर आ गए! उन्होंने देखा और फिर अपने कमंडल से दूध निकालकर उस बालक को दूध पिलाया! फिर दोनों ने सोचा अब एकांत, जप, साधना के समय वहां से विदा होना ही अच्छा! दोनों नाथ बच्चे को लेकर जाने लगे! इतने में कनकगिरी गांव के ब्राह्मण और ब्राह्मणी जिनको संतान नहीं थी! उन्होंने आग्रह किया कि आप इतने बड़े योगी हैं! तो हमारा भी कुछ भला करिए नाथ! गाव मे मधु नाम का ब्राह्मण और उसकी पत्नी गंगा रहती थी! गांव वालों ने कहा कि आपकी कृपा से इन्हें संतान मिल सकती है! गोरखनाथ और मछिन्द्रनाथ ने कहा
तुम इस बालक को क्यों नहीं गोद ले लेते! कुछ सोच विचार के बाद दोनों ने वक्त बालक को गोद लेना स्वीकार कर लिया!
यही बालक गहिनीनाथ योगी के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ! गहिनीनाथ की समाधि महाराष्ट्र के चिंचोली गांव में है! जो तहसील पटोदा और जिला बीड़ के अंतर्गत आता है! मुसलमान इसे गैबीपीर कहते हैं!
Very nice story
ReplyDeleteOm machinery nath
ReplyDeletebhai agr aapko follow karna hai to kaise kare uske liye bhi setting banao please
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